Monday 5 September 2016

जब पहली बूँद आँसू  की टपकी
और गिरा जब पहली दफ़ा ,
माँ!! तूने सम्हालना सिखाया।

हज़ारों ख्वाहिशों की लंबी चादर लिए
जब कमज़ोर नादानियाँ  की,
कान मरोड़ कर इंसान बनाया।

शिक्षा और जीवन दोनों अलग हैं बच्चे!
हैरान था मैं फ़र्क  जान कर,
हाँ! मुझे आपसे पढ़ना  पसंद न था,
पर जो पसंद था, वो जीवन जीना  सिखाया।

न गहरी थी मेरी ज्ञान की शीशी
बेढब थी मेरी समझ अधूरी जैसी,
"क्यूँ " को समझा  कर "भूख " को जगाया
अब तक भूखा हूँ देख लो! बस गुरुदक्षिणा यही दे पाया।

क्या कहूँ ? कितना हैरान था मैं !
अपनी हस्ती ढूंढने में परेशान  था मैं
भीड़ में ही सही, सीखा  बहोत कुछ,
कुछ बांकी था? सीखने का हौसला दिलाया

हाँ, थोड़ा व्यस्त हूँ।
न समझना; ज़िन्दगी की होड़ में मस्त हूँ।
तूने जो दिया, उसकी "मूरत" बनाने चला हूँ।
बन जाये, तो समझूँ  गुरुदक्षिणा दे पाया।

लगा हूँ अपनी धुन में,
साथ जो कुछ दिया तुमने,
देखना; एक दिन दुनिया कहेगी,
इस शिष्य ने क्या शिक्षक पाया।


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