Friday 7 September 2012

नशे के आदि हम ,
तसव्वुर में उनकी याद लिए
ख़ुश  थे तन्हाई में अभी तलक।
पर न जाने क्यों ......
तन्हाई नागवार थी हमें।
खुश थे अंधेरों में,
पर न जाने क्यों .......
इक चमक बेचैन कर गई।
आ गए मैकदे तक,
अपनी बेचैनी लेकर,
पर न जाने क्यों ........
उसकी पाकगी चैन कर गई।
पीया तो हमने भी ,
जाम-ए-ख़ुमार  छक कर,
पर न जाने क्यों .....
उसकी मुहोब्बत अपनी मोहताज कर गई।
पर न जाने क्यों ......
पर न जाने क्यों ......
पर न जाने क्यों  ........

Monday 3 September 2012

"HAAN ! MAIN UGRA HOON......."

                "हाँ! मैं उग्र हूँ ...............।"

     और मुझे इसका न कोई दुःख है या न ही गुमान। मैं जैसा हु वैसा अपने आप में हूँ। मैंने किसी से पूछा या किसी से राय नै मांगी। खैर ! कुछ किन्कर्ताव्मूधि विचारधारा वाले मुझसे शायद अहर्षित हों। पर मुझे इसका कोई फर्क नहीं पर्ने वाला। क्योकि जो मैं हूँ ' वो ही रहूँगा। कोई कितनी भी मेरी हंसी उराये या कितना भी मेरे विचारों को बचपना समझकर अपने "बचपने " को बहलायें' , मुझे कोई इत्तेफाक नहीं। हाँ ! मैं आज की पोंगापंथी और बेढब राजनितिक स्थिति को देखकर को उद्द्वेलित होता रहूँगा और तबतक होता रहूँगा जबतक ये "राजनितिक नट " सुधर ना जाएँ या काल ग्रसित ना हो जाएं। अब जो मैं कहूँगा उसको मेरे कुछ मित्र "फेसबुक पर इमोशनल अत्याचार , अपनी बकवास " या ना जाने क्या क्या कहें पर सच यही है की कोई भी नेटवर्किंग साईट किसी भी प्रकार के आन्दोलन को लाने में पर्याप्त होता है और इसे सबसे  वही लोग नकारते हैं जो इसका सबसे ज्यादा "उपयोग " करते हैं। मेरे कुछ दोस्त रोज़ मेरी इस उद्द्वेलित विचारधारा का फूहर  मजाक उड़ाते हैं। पर न मैं सुधरूंगा न सुधरने की कोशिश करूँगा। सभी बात करते हैं कि  फिर से रोज़गार का अकाल पड़ने वाला है , पर इसपर अगर बात करना चाहो के "क्यूँ ?" तब तो मानो शामत आ गई। "तुम में क्रांतिकारी खून है, तुम्हें  तो दिल्ली में रहना चाहिए था,  या फिर तुम तो अन्ना हजारे से भी आगे जाओगे ". मैं तो उस महापुरुष के चरणधूल के बराबर ही नहीं। उनकी क्या, उनके आस पास के किसी भी "परछाई " के बराबर भी नहीं। गज़ब की बात है की समस्या के बारे में सभी अपना सिर  नोचेंगे पर उसकी जड़ या उसके समाधान में पता नै दोषारोपण का रटा रटाया मन्त्र क्यों सभी पढने लगते हैं?
                खैर जो भी हो, मैं आज पुनः आपके सामने उपस्थित हूँ कुछ खट्टी कुछ मीठी पाती लेकर। अगर कुछ भी अच्छा लगे तो अवश्य लिखना। 
        

            अंततः हमारी "कठपुतली " सरकार ने SMS  से प्रतिबन्ध हटा दिया पर ग़ौर  फरमाइयेगा के ये तब हुआ जब ब्लेक मनी  की प्रलयंकारी हवा ठंडी हो गई। 
         और दोस्तों ! आज की ताज़ा तरीन खबर यह है की आज हमारे प्रधानमन्त्री ने अव्वांचित तरीके से आवंटित कोयला ब्लाक के आवंटन को रद्द करने से पूरी तरह से नकार दिया है।http://aajtak.intoday.in/story.php/content/view/707056/13/0/MCL-moves-SC-on-closure-of-coal-mines.html वाह रे मनमोहन सिंह जी! आपमें तो " सिंह " जैसी कोई काबिलियत ही नहीं है। 
        पता है! "इन्हें " अपनी खामोशी पर कुछ ज्यादा ही गुमाँ  है। पर इन्हें शायद पता नहीं के
                 जहां  बसंत में भी गुलशन उजड़े  तो ख़ता  गुलबर होता है,
                 आबरू बिकने पर भी खामोश निगाहों में शर्म भी बे असर होता है।


     खैर ........ लगता है हमारे इतिहास से जहा दुनिया हमें "सोने की चिड़िया " की पदवी से नवाज़ा करती थी सिर्फ और सिर्फ इस सरकार के इस कार्यकाल के कारण हमारे देश को "घोटालों का अभेद्य किला " के नाम से जानेगी।
          इस पूरे प्रकरण में महान श्री अरविन्द केजरीवाल जी का संयम और जुझारू कर्म पप्रनम्ययोग्य  है। वे अब भी हमारी "निद्रा का ढोंग किये " जनता को जगाने की जीतोड़ कोशिश कर रहे हैं। वह रे कर्मवीर! तुझे सत सत  नमन।

            
          मैं तो बस आप सभी दोस्तों को हमेशा जगाने की चेष्टा करता  हूँ और शायद करता रहूँगा। क्योंकि आप सभी जगे तो हो , सब कुछ जानते हो पर नींद में होने का ढोंग किये हो क्योंकि "कौन इस झमेले में पड़े , ये हमारा काम नहीं है " दिन रात की थकान के बाद हर आदमी ऐसा  ही सोचेगा। पर याद रखना ऐ रक्तबाहू  जनता जनार्दन! ये जो घोटाले हो रहे हैं आपके अपने मेहनत  की कमाई  की बर्बादी कर रहे हैं।
       तो ............ जागो ! जागो! जागो ! जनदेव जागो!