Saturday 9 February 2013

उस रश्क़ में जीने दो ,

जो दर्द-ए-दिल बढ़ा के भी आराम देता है।

उन आँखों की ख़ुमारी में खोने दो ,

जो सौ मैक़दों का जाम देता है।

ऐ ख़ुदा ! क्या हुआ जो वो बेख़बर है मेरे इस एहसास से . . . . .;

इतना काफी है; कि मैं उसकी मुहोब्बत में तेरी इबादत भूल जाता हूँ।

                                                            ~: अविनाश 

Sunday 3 February 2013

हम सभी फ़ालतू की बातों में कुछ ज्यादा ही ध्यान देते हैं। कभी हमारे कुछ हिन्दू दोस्त अपने बकवासी "हिन्दुत्व " का दिखावा करने के लिए आतंकवाद को "मुस्लिम आतंकवाद " का बेवजह नाम देते रहते हैं। पर हम लोग ये नहीं समझते कि  इस से हमारा देश टूटेगा। वाह! रे नाम के देशवाशियों। ये भूल गए कि हिन्दू भाई मुस्लिम भाई दोनों साथ साथ आज़ादी की लड़ाई लड़े , और आज आज़ाद भारत मिला तो दोनों आपस में ही लड़ रहे हैं। और ये उन हिन्दू भाइयों के लिए हो हमेशा धर्म के नाम पर चिल्लपों मचाते रहते हैं। गौर फ़र्माइयेगा , ये उन हिन्दुओं के नाम और आरोप हैं जिन्होंने आतंकवादियों से भी घिनोने काम किये और ये सूचि कुछ और भी लम्बी है।:~

नाम : माधुरी गुप्ता
काम : पाकिस्तान में भारतीय दूतावास के लिए काम करना
आरोप : विश्व की खतरनाक खुफिया एजंसी आई एस आई के लिए अपने ही देश की जासूसी की
नाम : रविंदर सिंह
काम : रा का अधिकारी
आरोप : अमरीकी खुफिया एजंसी सी आई ऐ के जासूसी की ... लेकिन भारत की पकड़ में आने से पहले ही लापता
नाम : सुखजिंदर सिंह
काम : नौ सेना अधिकारी
आरोप : एक रूसी महिला के साथ कथित सम्बन्ध की जाँच जारी ....
नाम : मनमोहन शर्मा
काम : चीन में भारतीय दूतावास में वरिष्ठ अधिकारी
आरोप : एक चीनी महिला के साथ सम्बन्ध के बाद भारत वापस बुला लिया गया.... शक था महिला चीनी मुखबिर
नाम : रवि नायर
काम : १९७५ बैच के रा अधिकारी
आरोप : २००७ में एक लड़की के साथ दोस्ती के बाद वापस बुलाया गया ... लड़की चीनी जासूसी एजंसी की मुखबिर
नाम : अताशे
काम : भारतीय नौ सेना में कार्यरत
आरोप : पाकिस्तान में विदेशी खुफिया एजंसियों से कथित तालमेल का आरोप
नाम : यशोदानंद सिंह
काम : रिटायर्ड सी आर पी एफ सब इंस्पेक्टर
आरोप : नक्सलियों को हथियार बेचने वाले गिरोह का सरगना
नाम : विनोद पासवान
काम : हवालदार सी आर पी एफ
आरोप : नक्सलियों को हथियार बेचे
नाम : दिनेश सिंह
काम : हवालदार सी आर पी एफ
आरोप : नक्सलियों को हथियार बेचे
नाम : बंशलाल
काम : उत्तर प्रदेश पुलिस
आरोप : नक्सलियों को हथियार बेचे
नाम : अखिलेश पाण्डेय
काम : उत्तर प्रदेश पुलिस
आरोप : नक्सलियों को हथियार बेचे
नाम : राम किरपाल सिंह
काम : उत्तर प्रदेश पुलिस
आरोप : नक्सलियों को हथियार बेचे
नाम : नत्थी राम
काम : मोरादाबाद पुलिस अकादमी
आरोप : नक्सलियों को हथियार बेचे......
         अब मेरा सवाल है उन सभी हिन्दू और मुस्लिम दोस्तों से ; कि  कल जो कुछ भी इतिहास  में हुआ क्या उसको लौटाया जा सकता है? क्या उसको बार-बार कुरेदने से और उस घाव को हरा करके लड़ने- झगरने से हमारा वर्तमान और भविष्य सही हो पाएगा? क्या आजादी में केवल एक ही धर्म के लोग लड़े थे?
    और ख़ास कर के उन चू****यों को तो मैं सलाम करता हूँ जो बेवजह का हिन्दू-हिन्दू और इस्लाम इस्लाम का जाप कर के धर्म के नाम पर,मज़हब के नाम पर देश को तोड़ने में लगे हैं और देश और मज़हब दोनों को बदनाम करते हैं। 
    ये हमारे मुस्लिम भाइयों के लिए :
        हमारा हिन्दुस्तान; जहा तक हमने जाना, "दारूल अम्न" है (देवबंद के फतवे के हिसाब से). इसका मतलब यह है कि यहाँ पर  जो भी  मुस्लिम किसी दुसरे मज़हब वाले को बिला-वजह परेशान करे तो वह इस्लाम से खारिज हो जाता है। और ऐसा  कुरआन-शरीफ में भी लिखा है कि "अल्लाह एक है;और वो सबमे है। बस कोई उसे नबी कहता है तो कोई पैग़म्बर। वो सबके लिए बराबर है। किसी को जबरन किसी चीज़ के लिए मजबूर करना हराम है और ऐसे लोगों से खुद नाराज़ रहते हैं और इनपर दोज़ख़ की दुश्वारियाँ  बरसती हैं।" जब ऐसा  है तो फिर क्यों सुने ओवैशी जैसे काफिरों की बातें और क्यों याद करें वो बीता कल जो सिर्फ दर्द दे और अपनों से अलग करवाए। जितना हिन्दुस्तान हिन्दुओं का है ,उतना ही मुस्लिमों का भी। दोनों साथ साथ आज़ादी की लड़ाई लड़े थे। और अगर कुछ बेवकूफ लोग अगर आपको उकसायें बीते कल की दुहाई दे कर या धर्म के नाम का वास्ता दे कर , तो बस कलमा पढ़ के उसका मतलब समझा देना ; "या इलाह-ए-इल्लालाह मुहम्मद-ए-रसूल-अल्लाह "

ये हमारे हिन्दू भाइयों के लिए:
      क्या होगा कल को याद कर के, बाबर को औरंगजेब को, बख्तियार खिलजी को या गजनवी को याद कर के? क्या वो आ कर नया भारत बना देंगे? क्या जो हुआ, फिर से ठीक हो जाएगा? नहीं। कभी भी नहीं। उल्टा हालात बोस्निया , हर्जेगोविना जैसे बन जायेंगे। फिर सम्हालते रहना तिनकों में बंटे अपने "हिन्दू के हिन्दुस्तान" को। और किस मुसलमान को गालियाँ देते हो?अगर इतना ही इतिहास में जाने की आदत है तो अकबर क्यों याद नहीं आते जिन्होंने सबसे पहले "दीन-ए -इलाही " धर्म की स्थापना की थी जिसमे छुआ-छूत , जात-पात जैसी कोई चीज़ नहीं थी। और ये क्यों भूल जाते हो कि  अश्फाक-उल्ला खान साहब ने आज़ादी की खातिर फ़ासी को गले लगाया, मो . अब्दुल्लाह ने अंग्रेजों की गोलिया खाई और शहीद हो गए। आप लोग तो अन्ग्रेजों की उस चाल को कामयाब कर रहे हो जिस खातिर उन्होंने हमें बांटा था। आपलोग भी "मोहन भगवत, गोविन्दाचार्य " और न जाने कितने बेवकूफों की बातों में आ कर अपने ही भाइयों से लड़ भिड़ते हो। ऋग्वेद में लिखा है ; "एकोहं , द्वॆतियोनास्ति " . मतलब इश्वर एक हैं और वो सबके लिए हैं। दूसरा कोई नहीं। और विष्णुपुराण में लिखा है; "ममात्म्नः  निरात्म्नम , द्विरात्मनम अशिआत्मनम।
 नामात्मनाह भिन्नात्मनः,मामेकं जगनात्मनम।।" 
  मतलब तेरी आत्मा, उसकी आत्मा, अच्छी आत्मा , बुरी आत्मा सबमे मैं हूँ। बस नाम अलग हैं, पर सारे जगत में मैं ही व्याप्त हूँ।
     इसका मतलब जब हम किसी को भी (चाहे वो अपने धर्म के हो या दुसरे धर्म के ), अगर परेशान करते हैं या गालियाँ देते हैं तो हम अपने इश्वर के साथ एसा कर रहे हैं। अब तो साथ रहने की आदत डालो। लड़ के किसी का कुछ अच्छा नहीं होगा।
   बस कुछ भी करने से पहले अपने हिन्दुस्तान को याद कर लेना। क्यों कि :
        "पागल फकीर ये कहता सबको, कितना लाल बहेगा रंग?
           पहले टूटे दिल के टुकडे , अब तो मत तोड़ो ये वतन!
           बहोत हुआ; बस ख़त्म करो अब नफरत की ये काली जंग 
            वरना सबकुछ लुट जाएगा , हिन्दोस्तां फिर बिक जाएगा,
             नेताओं के तोंद के नीचे समेटना तुम अपना ज़ेहन।"
       जय हिन्द                                      :~ अविनाश  

Friday 1 February 2013

फेसबुक पर आज किसी ने लिखा था :
नालंदा विश्वविद्यालय को क्यों जलाया गया था..? जानिए सच्चाई ...??:एक सनकी और चिड़चिड़े स्वभाव वाला तुर्क मियां लूटेरा था ....बख्तियार खिलजी. इसने ११९९ इसे जला कर पूर्णतः नष्ट कर दिया। उसने उत्तर भारत में बौद्धों द्वारा शासित कुछ क्षेत्रों पर कब्ज़ा कर लिया था. एक बार वह बहुत बीमार पड़ा उसके हकीमों ने उसको बचाने की पूरी कोशिश कर ली ...मगर वह ठीक नहीं हो सका. किसी ने उसको सलाह दी...नालंदा विश्वविद्यालय के आयुर्वेद विभाग के प्रमुख आचार्य राहुल श्रीभद्र जी को बुलाया जाय और उनसे भारतीय विधियों से इलाज कराया जाय उसे यह सलाह पसंद नहीं थी कि कोई भारतीय वैद्य ... उसके हकीमों से उत्तम ज्ञान रखते हो और वह किसी काफ़िर से .उसका इलाज करवाए फिर भी उसे अपनी जान बचाने के लिए उनको बुलाना पड़ा उसने वैद्यराज के सामने शर्त रखी... मैं तुम्हारी दी हुई कोई दवा नहीं खाऊंगा...
किसी भी तरह मुझे ठीक करों ... वर्ना ...मरने के लिए तैयार रहो. बेचारे वैद्यराज को नींद नहीं आई... बहुत उपाय सोचा...
अगले दिन उस सनकी के पास कुरान लेकर चले गए.. कहा...इस कुरान की पृष्ठ संख्या ... इतने से इतने तक पढ़ लीजिये... ठीक हो जायेंगे...!
उसने पढ़ा और ठीक हो गया ..जी गया... उसको बड़ी झुंझलाहट हुई...उसको ख़ुशी नहीं हुई उसको बहुत गुस्सा आया कि ... उसके मुसलमानी हकीमों से इन भारतीय वैद्यों का ज्ञान श्रेष्ठ क्यों है...! बौद्ध धर्म और आयुर्वेद का एहसान मानने के बदले ...उनको पुरस्कार देना तो दूर ... उसने नालंदा विश्वविद्यालय में ही आग लगवा दिया ...पुस्तकालयों को ही जला के राख कर दिया...! वहां इतनी पुस्तकें थीं कि ...आग लगी भी तो तीन माह तक पुस्तकें धू धू करके
जलती रहीं।उसने अनेक धर्माचार्य और बौद्ध भिक्षु मार डाले. आज भी बेशरम सरकारें...उस नालायक बख्तियार खिलजी के नाम पर रेलवे स्टेशन बनाये पड़ी हैं... ! उखाड़ फेंको इन अपमानजनक नामों को... मैंने यह तो बताया ही नहीं... कुरान पढ़ के वह कैसे ठीक हुआ था. हम हिन्दू किसी भी धर्म ग्रन्थ को जमीन पर रख के नहीं पढ़ते... थूक लगा के उसके पृष्ठ नहीं पलटते मिएँ ठीक उलटा करते हैं..... कुरान के हर पेज को थूक लगा लगा के पलटते हैं...!बस... वैद्यराज राहुल श्रीभद्र जी ने कुरान के कुछ पृष्ठों के कोने पर एक दवा का अदृश्य लेपलगा दिया था...वह थूक के साथ मात्र दस बीस पेज चाट गया...ठीक हो गया और उसने इस एहसान का बदला नालंदा को नेस्तनाबूत करके दिया आईये अब थोड़ा नालंदा के बारे में भी जानलेते है यह प्राचीन भारत में उच्च्
शिक्षा का सर्वाधिक महत्वपूर्ण और विख्यात केन्द्र था। महायान बौद्ध धर्म के इस शिक्षा-केन्द्र में हीनयान बौद्ध-धर्म के साथ ही अन्य धर्मों के तथा अनेक देशों के
छात्र पढ़ते थे। वर्तमान बिहार राज्य में पटना से 88.5 किलोमीटर दक्षिण--पूर्वऔर राजगीर से 11.5 किलोमीटर उत्तर में एक गाँव के पास अलेक्जेंडर कनिंघम
द्वारा खोजे गए इस महान बौद्ध विश्वविद्यालय के भग्नावशेष इसके प्राचीन वैभव का बहुत कुछ अंदाज़ करा देते हैं। अनेक पुराभिलेखों और सातवीं शती में भारत भ्रमण के लिए आये चीनी यात्री ह्वेनसांग तथा इत्सिंग के यात्रा विवरणों से इस विश्वविद्यालय के बारे में विस्तृत जानकारी प्राप्त होती है। प्रसिद्ध
चीनी यात्री ह्वेनसांग ने 7वीं शताब्दी में यहाँ जीवन का महत्त्वपूर्ण एक वर्ष एक विद्यार्थी और एक शिक्षक के रूप में व्यतीत किया था। प्रसिद्ध 'बौद्ध सारिपुत्र'
का जन्म यहीं पर हुआ था। स्थापना व संरक्षण इस विश्वविद्यालय की स्थापना का श्रेय गुप्त शासक कुमारगुप्त प्रथम ४५०-४७० को प्राप्त है। इस विश्वविद्यालय को कुमार गुप्त के उत्तराधिकारियों का पूरा सहयोग मिला। गुप्तवंश के पतन के बाद भी आने वाले सभी शासक वंशों ने इसकी समृद्धि में
अपना योगदान जारी रखा। इसे महान सम्राट हर्षवर्द्धन और पाल शासकों का भी संरक्षण मिला। स्थानिए शासकों तथा भारत के विभिन्न क्षेत्रों के साथ ही इसे अनेक विदेशी शासकों से भी अनुदान मिला।

नालंदा में सहस्रों विद्यार्थियों और आचार्यों के अध्ययन के लिए, नौ तल का एकविराट पुस्तकालय था जिसमें ३ लाख से अधिक पुस्तकों का अनुपम संग्रह था। इस पुस्तकालय में सभी विषयों से संबंधित पुस्तकें थी। यह 'रत्नरंजक' 'रत्नोदधि' 'रत्नसागर' नामक तीन विशाल भवनों में स्थित था। 'रत्नोदधि' पुस्तकालय में अनेक अप्राप्य हस्तलिखित पुस्तकें संग्रहीत थी। इनमें से अनेक पुस्तकों की प्रतिलिपियाँ चीनी यात्री अपने साथ ले गये थे।
किसी भी तरह मुझे ठीक करों ... वर्ना ...मरने के लिए तैयार रहो. बेचारे वैद्यराज को नींद नहीं आई... बहुत उपाय सोचा...अगले दिन उस सनकी के पास कुरान लेकर चले गए.. कहा...इस कुरान की पृष्ठ संख्या ... इतने से इतने तक पढ़ लीजिये... ठीक हो जायेंगे...!उसने पढ़ा और ठीक हो गया ..जी गया... उसको बड़ी झुंझलाहट हुई...उसको ख़ुशी नहीं हुई उसको बहुत गुस्सा आया कि ... उसके मुसलमानी हकीमों से इन भारतीय वैद्यों का ज्ञान श्रेष्ठ क्यों है...! बौद्ध धर्म और आयुर्वेद का एहसान मानने के बदले ...उनको पुरस्कार देना तो दूर ... उसने नालंदा विश्वविद्यालय में ही आग लगवा दिया ...पुस्तकालयों को ही जला के राख कर दिया...! वहां इतनी पुस्तकें थीं कि ...आग लगी भी तो तीन माह तक पुस्तकें धू धू करकेजलती रहीं।उसने अनेक धर्माचार्य और बौद्ध भिक्षु मार डाले. आज भी बेशरम सरकारें...उस नालायक बख्तियार खिलजी के नाम पर रेलवे स्टेशन बनाये पड़ी हैं... ! उखाड़ फेंको इन अपमानजनक नामों को... मैंने यह तो बताया ही नहीं... कुरान पढ़ के वह कैसे ठीक हुआ था. हम हिन्दू किसी भी धर्म ग्रन्थ को जमीन पर रख के नहीं पढ़ते... थूक लगा के उसके पृष्ठ नहीं पलटते मिएँ ठीक उलटा करते हैं..... कुरान के हर पेज को थूक लगा लगा के पलटते हैं...!बस... वैद्यराज राहुल श्रीभद्र जी ने कुरान के कुछ पृष्ठों के कोने पर एक दवा का अदृश्य लेपलगा दिया था...वह थूक के साथ मात्र दस बीस पेज चाट गया...ठीक हो गया और उसने इस एहसान का बदला नालंदा को नेस्तनाबूत करके दिया आईये अब थोड़ा नालंदा के बारे में भी जानलेते है यह प्राचीन भारत में उच्च्शिक्षा का सर्वाधिक महत्वपूर्ण और विख्यात केन्द्र था। महायान बौद्ध धर्म के इस शिक्षा-केन्द्र में हीनयान बौद्ध-धर्म के साथ ही अन्य धर्मों के तथा अनेक देशों केछात्र पढ़ते थे। वर्तमान बिहार राज्य में पटना से 88.5 किलोमीटर दक्षिण--पूर्वऔर राजगीर से 11.5 किलोमीटर उत्तर में एक गाँव के पास अलेक्जेंडर कनिंघमद्वारा खोजे गए इस महान बौद्ध विश्वविद्यालय के भग्नावशेष इसके प्राचीन वैभव का बहुत कुछ अंदाज़ करा देते हैं। अनेक पुराभिलेखों और सातवीं शती में भारत भ्रमण के लिए आये चीनी यात्री ह्वेनसांग तथा इत्सिंग के यात्रा विवरणों से इस विश्वविद्यालय के बारे में विस्तृत जानकारी प्राप्त होती है। प्रसिद्धचीनी यात्री ह्वेनसांग ने 7वीं शताब्दी में यहाँ जीवन का महत्त्वपूर्ण एक वर्ष एक विद्यार्थी और एक शिक्षक के रूप में व्यतीत किया था। प्रसिद्ध 'बौद्ध सारिपुत्र'का जन्म यहीं पर हुआ था। स्थापना व संरक्षण इस विश्वविद्यालय की स्थापना का श्रेय गुप्त शासक कुमारगुप्त प्रथम ४५०-४७० को प्राप्त है। इस विश्वविद्यालय को कुमार गुप्त के उत्तराधिकारियों का पूरा सहयोग मिला। गुप्तवंश के पतन के बाद भी आने वाले सभी शासक वंशों ने इसकी समृद्धि मेंअपना योगदान जारी रखा। इसे महान सम्राट हर्षवर्द्धन और पाल शासकों का भी संरक्षण मिला। स्थानिए शासकों तथा भारत के विभिन्न क्षेत्रों के साथ ही इसे अनेक विदेशी शासकों से भी अनुदान मिला।
नालंदा में सहस्रों विद्यार्थियों और आचार्यों के अध्ययन के लिए, नौ तल का एकविराट पुस्तकालय था जिसमें ३ लाख से अधिक पुस्तकों का अनुपम संग्रह था। इस पुस्तकालय में सभी विषयों से संबंधित पुस्तकें थी। यह 'रत्नरंजक' 'रत्नोदधि' 'रत्नसागर' नामक तीन विशाल भवनों में स्थित था। 'रत्नोदधि' पुस्तकालय में अनेक अप्राप्य हस्तलिखित पुस्तकें संग्रहीत थी। इनमें से अनेक पुस्तकों की प्रतिलिपियाँ चीनी यात्री अपने साथ ले गये थे।

मैंने बस इतना ही कहा:
  • Avinash Jha स्टेशन का नाम बदलने या उसे तोड़ने से क्या होगा ? क्या सबकुछ पहले जैसा हो जाएगा? नहीं न! तो फिर क्यों एस पोस्ट जो धर्म के नाम पर अपने ही दोस्त भाइयों को खुद से अलग करे? जो हो गया क्या उसको भूल कर आगे के बारे में सोचने की फुर्सत नहीं है? या फिर हमेशा लड़ कट के आपस में झगड़ के मरने की हम भारतीयों को आदत लग चुकी है? माफ़ करना admin ! पर ऐसे पोस्ट कुछ अच्छा नहीं करते पर उल्टा देश को तोरते हैं, एक दुसरे के लिए गुस्सा बढाते हैं। मुझे इतिहास थोडा बहुत पता है पर आपकी पोस्ट में 30% जानकारी ग़लत थी(ख़ास करके उंगलिया चाट कर कुरआन शरीफ पढने वाल़ी ). और हा! कृपा कर के देश को तोरने वाले इसे पोस्ट्स तो मत करिए। एक तो हमलोग पहले से ही दंगों , और न जाने कितने जराइम से घिरे हुए हैं, ऊपर से ऐसे पोस्ट्स तो और हमें ही तोड़ेंगे। इस बात को समझिये।

'बलात्कार सिर्फ "बलात्कार" नहीं होता।'

'RAPE IS NOT JUST ONLY "RAPE".'