Sunday 30 December 2012

ये जहाँ;
एक शमशान;
ज़िन्दा- बेजान ;
गुलशन में बियाबान;
भीड़ भरा वीरान;
कब जागेगा हिंदुस्तान?

आँसू  के सैलाब;
कुंद कितने ख्व़ाब ;
टूटे बिखरे सपने;
आधे चुप,आधे रोने को परेशान;
बाकी सांस लेते ज़िन्दा बेजान;
कब जागेगा हिंदुस्तान?

छः टुकड़ों में विक्षिप्त;
ममता-प्रेम की दीप्त;
बुझी मखमली लौ;
फटे दिन में ही मानवता के पौ ;
रोटी सकें बंदरों के रौ ;
चूल्हा बनी चिता की लौ;
अब तो जागो इंसान!

कुछ बेच आये ईमान;
कुछ अपनी बारी के मेहमान;
कुछ घर के "दुबके पहालवान ";
क्यूँ? नारी का ऐसा इम्तिहान!
हे देवी भारती! स्वयं बचाओ अपना ईमान।
मुर्दा है पूरा हिन्दुस्तान।
अब तो जागो! हिजड़ों बेइमान!

आज उसका, कल मेरा,
कभी तो तेरा भी घर भी होगा वीरान;
मर जाओगे प्यार की बूँद के लिए सारे मर्दान।

उसके दामन को छू कर जो आग लगाईं है;
और बाकियों ने अपनी रोटियाँ पकाई हैं;
याद रक्खो .............!
इसी आग में जल जाएगा तेरा "भारत महान ".
यही है महाकाल का आह्वान ............