गणतंत्र दिवस पर विशेष :~
आओ भैया , आज दिखाएँ;
हम तुमको ऐसा तंत्र,
जो बूढ़ी आज़ादी को ढोता ;
बना हमारा "प्रजातंत्र".
गुस्ताखी माफ़ . . . . .
हरेक घर में दुबक के बैठा ;
हिम्मत का संयंत्र ,
बाहर क्या; घर में नहीं सुरक्षित देवी ,
कैसे गायें "विकास-एकता" - मंत्र?
अरे! जिनको दें देश चलाने;
वो बनाएं इसे "नोट- छपाई" यंत्र ,
तो अब खुद ही बताओ यारों;
कहाँ गया हमारा "लोकतंत्र "?
घोटालों और बलात्कार का , बना भारत "यँत्र " है ,
यही " गणतंत्र " है; यही " लोकतंत्र " है।
धर्म- नाम पर तोड़ें इसको, "भागवत " "ओवैशी " के लोभी तंत्र हैं,
यही " गणतंत्र " है; यही " लोकतंत्र " है।
मूक "मुखिया "; "साहब " बोलें "हाफ़िज़ " को जो "शिंदे " जैसे " रोबोट-यन्त्र " हैं,
यही " गणतंत्र " है; यही " लोकतंत्र " है।
पाक क नापाक़ हमले पर भी; मोन "मुखिया " संट है,
यही " गणतंत्र " है; यही " लोकतंत्र " है।
नित नए "खाप " फतवों में बंदी; पूरा स्त्री-तंत्र है,
यही " गणतंत्र " है; यही " लोकतंत्र " है।
2G , 3G "कालेधन " के "कोयले " में "लवासा " इत ; सारा मंत्री-तंत्र है,
यही " गणतंत्र " है; यही " लोकतंत्र " है।
आज लुटी, कल कहीं जली ; देवियों को "तारणहार " "कू " आशाराम का "भैया" मंत्र है,
यही " गणतंत्र " है; यही " लोकतंत्र " है।
बर्बरता के चरम पर पहुँचा; पूरा असामाज तंत्र है,
यही " गणतंत्र " है; यही " लोकतंत्र " है।
सब भूले; 'हम साथ लड़े थे , आज़ादी को पाने को ';
आज भिड़े सब एक-दूजे की बर्बादी भुनाने को।
हिन्दू-मुस्लिम-सिक्ख-इसाई ;
नहीं रहा कोई भाई,
धर्म-कुरक्षित नेताओं को सुनकर;
बन बैठे सब "मानव-कसाई ".
'आज उठा विश्वास "विधान " से',
कुछ जनता का झुण्ड कहे,
'क्यूँ जश्न मनाएं हम सब ;
गण -गणतंत्र ही न रहे।'
बांकी अपनी बारी के मालिक;और न्योते में कुचक्र तंत्र है,
यही " गणतंत्र " है; यही " लोकतंत्र " है।
फिर भी , आप सब के लिए :~
"गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ "
:~"अविनाश "