Tuesday, 8 November 2016

Freedom of Freelance

Why FREELANCE? The first question which storms the mind. Why not a cubical or a corporate culture job? For me the priority is freedom. Freedom to implement my logic. While working in cubical what I found till now is where we were supposed to get requirement analysis document; we are getting a spreadsheet (which includes all the existing logic). We are only converting that spreadsheet into codes (but not implementing our own logic to create solution for the particular requirement given). It's like a regular boring meal of a patient served in a hospital. There is not much exercise to do.
       I am passionate about my work. And if someone is passionate of some work; he will definitely want to have face some challenge to know his limits and to increase it. (But will not be settle down with same boring regular shot).I try to find new ways to solve problems and if succeed, I share that. The "habit of sharing the knowledge". It may sound childish, but that's the beauty of being passionate.
       Another huge obstacle in regular corporate work culture is work-life balance. Deadline is the thing we must follow and we will have to. But in corporate, somehow unknowingly we miss the beauty of life while playing with beauty of code. While in freelancing, we can enjoy both at the same time. It's like "Cherry on the top".
      When it comes to work practice and ethics; I believe in with selfishness. It means, "be selfish to get more challenging work--> complete it (or find the solution with collaboration)-->share it". It provides regular improvement (technically and morally) . My work ethics are "Learn-Implement-Share-Target task". When it comes to fulfillment of all my ethics, desire, passion for my work; fortunately I found Toptal the best suitable. It fills all the gap of my work and life with all the freedom which I searched.

   Yes! That's how I want my (WORK) life.
         

Monday, 5 September 2016

जब पहली बूँद आँसू  की टपकी
और गिरा जब पहली दफ़ा ,
माँ!! तूने सम्हालना सिखाया।

हज़ारों ख्वाहिशों की लंबी चादर लिए
जब कमज़ोर नादानियाँ  की,
कान मरोड़ कर इंसान बनाया।

शिक्षा और जीवन दोनों अलग हैं बच्चे!
हैरान था मैं फ़र्क  जान कर,
हाँ! मुझे आपसे पढ़ना  पसंद न था,
पर जो पसंद था, वो जीवन जीना  सिखाया।

न गहरी थी मेरी ज्ञान की शीशी
बेढब थी मेरी समझ अधूरी जैसी,
"क्यूँ " को समझा  कर "भूख " को जगाया
अब तक भूखा हूँ देख लो! बस गुरुदक्षिणा यही दे पाया।

क्या कहूँ ? कितना हैरान था मैं !
अपनी हस्ती ढूंढने में परेशान  था मैं
भीड़ में ही सही, सीखा  बहोत कुछ,
कुछ बांकी था? सीखने का हौसला दिलाया

हाँ, थोड़ा व्यस्त हूँ।
न समझना; ज़िन्दगी की होड़ में मस्त हूँ।
तूने जो दिया, उसकी "मूरत" बनाने चला हूँ।
बन जाये, तो समझूँ  गुरुदक्षिणा दे पाया।

लगा हूँ अपनी धुन में,
साथ जो कुछ दिया तुमने,
देखना; एक दिन दुनिया कहेगी,
इस शिष्य ने क्या शिक्षक पाया।


Tuesday, 10 February 2015

To Be Or Not To Be

To Be Or Not To Be


To be certain about any point....
Living in hole 
or got shout,

Don't know what is my destiny..
Finding the future 
with all fantasy.

The dos or don'ts 
we confront
haunted by own guiltless and hunts

you making me!!
Oh! stop... You mockin' me!
who the hell you are?
Are you God!! Or destiny -star?

I am, What I am. 
And I know What I am.
I was with you in "To be or not to be"
Now, go on your way and set me free.

'Couse I have the right to see my dreams...
I wanna throw your haunts and fill up my my zeals.
I hadn't seen the world that I've seen (with you)
I didn't know anything,
Cause I wanna know EVERYTHING. 
                                                                  -------Avinash Kumar

Saturday, 20 December 2014

एक पैग़ाम, मासूम के कातिलों के नाम :----



अजीब के मंज़र हैं यहाँ,
शायद खुदा बेखबर है यहाँ
के जो फ़रिश्ते कभी रूह थे किसी की जान के
अब बेजान कब्र दफ्न है यहाँ।


जिसने कभी शिकवा की थी अपनी तोतली ज़ुबाँ  से
के --- "मेली ख्वाइछ तो छोती है इछ जहान छे ;
मेली तो मिल्कियत है अम्मी की गोद  औल बाज़ू-ए-अब्बा सुल्तान छे "
आज वो नज़्म खामोश हैं कब्रिस्तान से
आज वो शिकायतें; हैं वीरान से
कई मासूम ख्वाब दफ्न हैं यहाँ।


खुदा के नाम पर फरिश्तों को मार डाला
मासूमीयत के कातिल ने इंसानियत काट डाला
क्या कुसूर था उन नन्हे फरिश्तों का;
जिनको बेवक़्त बेजान बना डाला।


आती रहेंगी सदाएं ज़मीन-ए-पाक से
मासूम सपनों और रोते वालिदों के टूटे ख्वाब से
तुम शैतान थे; शैतान ही रहोगे;
लिखा है करम तेरा ऐ कातिल ! दोज़ख में सड़ोगे।
ये नन्हे फरिश्तों की बद्दुआ और टूटे सपनों की हाय है;
तुझे मदीने में भी पत्थर की चोट नसीब थी
खुदा के इन्साफ से तुम न बचोगे।


चाहत तो होती है के तुम सब जैसों को ज़िंदा जला दु ;
मासूम लहू का बदला अभी चूका दु
खुदा का काम ज़रा असां करा दु।
फिर इल्म होता है --
इस मिट्टी के बदन में, बेजान दिल नही
हमारा ईमान है, तुम जैसे बुज़दिल बेईमान नही।            ----  अविनाश झा



Thursday, 26 December 2013

आगाज़ियाँ

                                          आगाज़ियाँ 





वो धुंधला सा साहिल 
आज चाहे लाख हँसे हमपर 
पर हैम अपना वक़्त बदल के रहेंगे। 
जाँ कि जान पर ही क्यूँ न आए 
कश्ती चला कर रहेंगे,
फ़क़त राह मिलने से हांसिल नहीं कुछ भी यारों,
हाँ ! हम आग़ाज़ कर मंज़िल पाकर रहेंगे। 
साक़ी को क्या पता; कितने नशे में है पैमाना 
हम मैखाना लुटा कर रहेंगे। 
चाहे लाख तूफाँ ले आएं वक़्त कि हवाएँ ,
..… उनका रुख़ बदलकर सहर को आफ़ताब दिखा कर रहेंगे,
ज़माने को अपना बना कर रहेंगे,
हम आगाज़ियाँ लाकर रहेंगे …… 
हम आगाज़ियाँ लाकर रहेंगे …… 
                                                                                                               




Saturday, 9 February 2013

उस रश्क़ में जीने दो ,

जो दर्द-ए-दिल बढ़ा के भी आराम देता है।

उन आँखों की ख़ुमारी में खोने दो ,

जो सौ मैक़दों का जाम देता है।

ऐ ख़ुदा ! क्या हुआ जो वो बेख़बर है मेरे इस एहसास से . . . . .;

इतना काफी है; कि मैं उसकी मुहोब्बत में तेरी इबादत भूल जाता हूँ।

                                                            ~: अविनाश 

Sunday, 3 February 2013

हम सभी फ़ालतू की बातों में कुछ ज्यादा ही ध्यान देते हैं। कभी हमारे कुछ हिन्दू दोस्त अपने बकवासी "हिन्दुत्व " का दिखावा करने के लिए आतंकवाद को "मुस्लिम आतंकवाद " का बेवजह नाम देते रहते हैं। पर हम लोग ये नहीं समझते कि  इस से हमारा देश टूटेगा। वाह! रे नाम के देशवाशियों। ये भूल गए कि हिन्दू भाई मुस्लिम भाई दोनों साथ साथ आज़ादी की लड़ाई लड़े , और आज आज़ाद भारत मिला तो दोनों आपस में ही लड़ रहे हैं। और ये उन हिन्दू भाइयों के लिए हो हमेशा धर्म के नाम पर चिल्लपों मचाते रहते हैं। गौर फ़र्माइयेगा , ये उन हिन्दुओं के नाम और आरोप हैं जिन्होंने आतंकवादियों से भी घिनोने काम किये और ये सूचि कुछ और भी लम्बी है।:~

नाम : माधुरी गुप्ता
काम : पाकिस्तान में भारतीय दूतावास के लिए काम करना
आरोप : विश्व की खतरनाक खुफिया एजंसी आई एस आई के लिए अपने ही देश की जासूसी की
नाम : रविंदर सिंह
काम : रा का अधिकारी
आरोप : अमरीकी खुफिया एजंसी सी आई ऐ के जासूसी की ... लेकिन भारत की पकड़ में आने से पहले ही लापता
नाम : सुखजिंदर सिंह
काम : नौ सेना अधिकारी
आरोप : एक रूसी महिला के साथ कथित सम्बन्ध की जाँच जारी ....
नाम : मनमोहन शर्मा
काम : चीन में भारतीय दूतावास में वरिष्ठ अधिकारी
आरोप : एक चीनी महिला के साथ सम्बन्ध के बाद भारत वापस बुला लिया गया.... शक था महिला चीनी मुखबिर
नाम : रवि नायर
काम : १९७५ बैच के रा अधिकारी
आरोप : २००७ में एक लड़की के साथ दोस्ती के बाद वापस बुलाया गया ... लड़की चीनी जासूसी एजंसी की मुखबिर
नाम : अताशे
काम : भारतीय नौ सेना में कार्यरत
आरोप : पाकिस्तान में विदेशी खुफिया एजंसियों से कथित तालमेल का आरोप
नाम : यशोदानंद सिंह
काम : रिटायर्ड सी आर पी एफ सब इंस्पेक्टर
आरोप : नक्सलियों को हथियार बेचने वाले गिरोह का सरगना
नाम : विनोद पासवान
काम : हवालदार सी आर पी एफ
आरोप : नक्सलियों को हथियार बेचे
नाम : दिनेश सिंह
काम : हवालदार सी आर पी एफ
आरोप : नक्सलियों को हथियार बेचे
नाम : बंशलाल
काम : उत्तर प्रदेश पुलिस
आरोप : नक्सलियों को हथियार बेचे
नाम : अखिलेश पाण्डेय
काम : उत्तर प्रदेश पुलिस
आरोप : नक्सलियों को हथियार बेचे
नाम : राम किरपाल सिंह
काम : उत्तर प्रदेश पुलिस
आरोप : नक्सलियों को हथियार बेचे
नाम : नत्थी राम
काम : मोरादाबाद पुलिस अकादमी
आरोप : नक्सलियों को हथियार बेचे......
         अब मेरा सवाल है उन सभी हिन्दू और मुस्लिम दोस्तों से ; कि  कल जो कुछ भी इतिहास  में हुआ क्या उसको लौटाया जा सकता है? क्या उसको बार-बार कुरेदने से और उस घाव को हरा करके लड़ने- झगरने से हमारा वर्तमान और भविष्य सही हो पाएगा? क्या आजादी में केवल एक ही धर्म के लोग लड़े थे?
    और ख़ास कर के उन चू****यों को तो मैं सलाम करता हूँ जो बेवजह का हिन्दू-हिन्दू और इस्लाम इस्लाम का जाप कर के धर्म के नाम पर,मज़हब के नाम पर देश को तोड़ने में लगे हैं और देश और मज़हब दोनों को बदनाम करते हैं। 
    ये हमारे मुस्लिम भाइयों के लिए :
        हमारा हिन्दुस्तान; जहा तक हमने जाना, "दारूल अम्न" है (देवबंद के फतवे के हिसाब से). इसका मतलब यह है कि यहाँ पर  जो भी  मुस्लिम किसी दुसरे मज़हब वाले को बिला-वजह परेशान करे तो वह इस्लाम से खारिज हो जाता है। और ऐसा  कुरआन-शरीफ में भी लिखा है कि "अल्लाह एक है;और वो सबमे है। बस कोई उसे नबी कहता है तो कोई पैग़म्बर। वो सबके लिए बराबर है। किसी को जबरन किसी चीज़ के लिए मजबूर करना हराम है और ऐसे लोगों से खुद नाराज़ रहते हैं और इनपर दोज़ख़ की दुश्वारियाँ  बरसती हैं।" जब ऐसा  है तो फिर क्यों सुने ओवैशी जैसे काफिरों की बातें और क्यों याद करें वो बीता कल जो सिर्फ दर्द दे और अपनों से अलग करवाए। जितना हिन्दुस्तान हिन्दुओं का है ,उतना ही मुस्लिमों का भी। दोनों साथ साथ आज़ादी की लड़ाई लड़े थे। और अगर कुछ बेवकूफ लोग अगर आपको उकसायें बीते कल की दुहाई दे कर या धर्म के नाम का वास्ता दे कर , तो बस कलमा पढ़ के उसका मतलब समझा देना ; "या इलाह-ए-इल्लालाह मुहम्मद-ए-रसूल-अल्लाह "

ये हमारे हिन्दू भाइयों के लिए:
      क्या होगा कल को याद कर के, बाबर को औरंगजेब को, बख्तियार खिलजी को या गजनवी को याद कर के? क्या वो आ कर नया भारत बना देंगे? क्या जो हुआ, फिर से ठीक हो जाएगा? नहीं। कभी भी नहीं। उल्टा हालात बोस्निया , हर्जेगोविना जैसे बन जायेंगे। फिर सम्हालते रहना तिनकों में बंटे अपने "हिन्दू के हिन्दुस्तान" को। और किस मुसलमान को गालियाँ देते हो?अगर इतना ही इतिहास में जाने की आदत है तो अकबर क्यों याद नहीं आते जिन्होंने सबसे पहले "दीन-ए -इलाही " धर्म की स्थापना की थी जिसमे छुआ-छूत , जात-पात जैसी कोई चीज़ नहीं थी। और ये क्यों भूल जाते हो कि  अश्फाक-उल्ला खान साहब ने आज़ादी की खातिर फ़ासी को गले लगाया, मो . अब्दुल्लाह ने अंग्रेजों की गोलिया खाई और शहीद हो गए। आप लोग तो अन्ग्रेजों की उस चाल को कामयाब कर रहे हो जिस खातिर उन्होंने हमें बांटा था। आपलोग भी "मोहन भगवत, गोविन्दाचार्य " और न जाने कितने बेवकूफों की बातों में आ कर अपने ही भाइयों से लड़ भिड़ते हो। ऋग्वेद में लिखा है ; "एकोहं , द्वॆतियोनास्ति " . मतलब इश्वर एक हैं और वो सबके लिए हैं। दूसरा कोई नहीं। और विष्णुपुराण में लिखा है; "ममात्म्नः  निरात्म्नम , द्विरात्मनम अशिआत्मनम।
 नामात्मनाह भिन्नात्मनः,मामेकं जगनात्मनम।।" 
  मतलब तेरी आत्मा, उसकी आत्मा, अच्छी आत्मा , बुरी आत्मा सबमे मैं हूँ। बस नाम अलग हैं, पर सारे जगत में मैं ही व्याप्त हूँ।
     इसका मतलब जब हम किसी को भी (चाहे वो अपने धर्म के हो या दुसरे धर्म के ), अगर परेशान करते हैं या गालियाँ देते हैं तो हम अपने इश्वर के साथ एसा कर रहे हैं। अब तो साथ रहने की आदत डालो। लड़ के किसी का कुछ अच्छा नहीं होगा।
   बस कुछ भी करने से पहले अपने हिन्दुस्तान को याद कर लेना। क्यों कि :
        "पागल फकीर ये कहता सबको, कितना लाल बहेगा रंग?
           पहले टूटे दिल के टुकडे , अब तो मत तोड़ो ये वतन!
           बहोत हुआ; बस ख़त्म करो अब नफरत की ये काली जंग 
            वरना सबकुछ लुट जाएगा , हिन्दोस्तां फिर बिक जाएगा,
             नेताओं के तोंद के नीचे समेटना तुम अपना ज़ेहन।"
       जय हिन्द                                      :~ अविनाश