आगाज़ियाँ
वो धुंधला सा साहिल
आज चाहे लाख हँसे हमपर
पर हैम अपना वक़्त बदल के रहेंगे।
जाँ कि जान पर ही क्यूँ न आए
कश्ती चला कर रहेंगे,
फ़क़त राह मिलने से हांसिल नहीं कुछ भी यारों,
हाँ ! हम आग़ाज़ कर मंज़िल पाकर रहेंगे।
साक़ी को क्या पता; कितने नशे में है पैमाना
हम मैखाना लुटा कर रहेंगे।
चाहे लाख तूफाँ ले आएं वक़्त कि हवाएँ ,
..… उनका रुख़ बदलकर सहर को आफ़ताब दिखा कर रहेंगे,
ज़माने को अपना बना कर रहेंगे,
हम आगाज़ियाँ लाकर रहेंगे ……
हम आगाज़ियाँ लाकर रहेंगे ……